नमस्कार मित्रो कैसे है आप सब आशा करते है आप सभी बहुत अच्छे होंगे। मित्रो श्रावण मास का महीना शुरू हो चूका है। अब इसी के साथ ही अब मंदिरों में भी भीड़ देखने को मिल रही है। वही जनपद बरेली में भी कुछ ऐसे मंदिर हैं, जो सावन के महीने में अपने आप में बेहद खास हो जाते हैं। और सावन के इस महीने में भगवान भोलेनाथ के मंदिरो में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इन मंदिरों में कावड़ यात्री अपनी कावड़ पूरा कर आदि देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए जल का अभिषेक करते हैं। तो चलिये आपको बताते है बरेली के वो 7 प्रमुख मंदिर जहा सिर्फ महादेव के दर्शन मात्रा से ही भक्तो की हर मनोकामना पूरी हो जाती है।
1- तपेश्वर नाथ मंदिर बरेली ?
बरेली के सुभाषनगर में स्थित श्री तपेश्वरनाथ मंदिर नाथ नगरी बरेली के मुख्य मंदिरों में से एक है। मान्यता के अनुसार तपेश्वर नाथ मंदिर में अनेको ऋषि-मुनियों ने कठोर तपस्या कर भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न किया था। जिसके फलस्वरूप भगवान्त शिव ने तपस्या से प्रसन्न होकर भगवन भोलेनाथ ने तपेश्वरनाथ कहकर पुकारा था।
साथ ही मंदिर के मंहत ने बताया कि ध्रुम ऋषि के एक शिष्य ने यहां कई सौ सालो तक तपस्या की थी। उनकी इस भक्ति को देख कर भगवान शिव यहां विराजमान हुए और तभी से मंदिर तपेश्वरनाथ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। जानकारी के मुताबिक आज जहा शिवलिंग है पहले वहा एक गुफा हुआ करती थी, जिसमें रहकर एक बाबा ने 400 वर्षों तक तप किया। ऐसा करने से उनके पूरे शरीर पर भालू के समान बाल हो गए। जिसके बाद लोग उन्हें भालू बाबा कहकर बुलाने लगे। मान्यता तो ये भी है कि वर्षो पहले यहाँ से माँ गंगा जी बहती थी। जिसके कारण यहाँ कि मिटटी आज भी रेतीली है जो इसका मुख्य प्रमाण है।
2-त्रिवटी नाथ मंदिर बरेली?
जनपद बरेली को नाथ नगरी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान भोलेनाथ के कई प्राचीन मंदिर हैं जो बरेली की चारों दिशाओं में विराजमान है और इन्ही प्राचीन मंदिरों में से एक मंदिर है त्रिवटी नाथ मंदिर अगर इस मंदिर के इतिहास की बात की जाये तो यह मंदिर लगभग 600 वर्ष पुराना है। और यहाँ हर समय भोलेनाथ के भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। इस मंदिर में जो भी भक्त सच्चे दिल से भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।
नाथ नगरी बरेली के प्रेम नगर क्षेत्र में स्थापित त्रिवटी नाथ मंदिर (Trivati Nath temple Bareilly) लगभग 600 वर्ष पुराना है। कहा जाता है कि लगभग 600 साल पहले जब यहां हर तरफ घना जंगल हुआ करता था और दूर-दूर तक सिर्फ जंगल ही जंगल दिखाई देता था। उसी दौर में एक चरवाहा तीन वट वृक्षों के नीचे आराम करते हुए सो गया और उसे सपने में भगवान शिव ने आकर कहा कि तुम जहां सो रहे हो, वहां मेरा एक शिवलिंग है। इसके बाद चरवाहे ने नंद से जागकर वह कुछ लोगो को अपने सपने के बारे में जानकारी दी जिसके बाद उस बट के पेड़ के नीचे गड्डा किया गया और वह सामने उसे एक भोलेनाथ की शिवलिंग दिखाई दिया। वह उठा और शिवलिंग की पूजा की जिसके बाद तब से आज तक यहां हर वक्त भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। और सावन में इस मंदिर की विशेषता और बढ़ जाती है।
3-वनखंडीनाथ मंदिर बरेली?
बाबा बनखंडी नाथ का मंदिर पूर्व दिशा में बरेली शहर के जोगी नवादा इलाके स्थित है। बाबा बनखंडी नाथ मंदिर को भी अति प्राचीन मंदिर माना जाता है। बाबा बनखंडी नाथ मंदिर की स्थापना राजा द्रुपद की पुत्री और पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने की थी। द्रोपदी ने अपने राजगुरु द्वारा इस शिवलिंग की विधिवत पूजा अर्चना कर प्राण प्रतिष्ठा की थी उस समय यहां से अविरल गंगा बहा करती थी। चारो तरफ वन से घिरे इस मंदिर को द्वापर युग में मुगल शासकों ने अनेको बार हमले किये।
जानकारी के मुताबिक आलमगीर औरंगजेब के सिपाहियों ने सैकड़ों हाथियों से शिवलिंग को जंजीरों से बांध कर नष्ट कराने की कोशिश की, परंतु शिवलिंग अपनी जगह से हिला तक नहीं और सारे सैनिक व हाथी मारे गए। जिसके कारण इस मंदिर का नाम वनखंडी नाथ मंदिर पड़ा। सावन माह में यहाँ भगवान् शिव के दर्शन के लिए लम्बी लम्बी भक्तो की कतारे लगती है। मंदिर परिशर में चालीसा का पाठ करने से बाबा बनखंडी नाथ अपने भक्तो की सभी मनोकामना पूरी करते है साथी ही साथ मंदिर की हरियाली और शिव मय वातावरण यहाँ भक्तो को शांति का एहसास कराती है।
अलखनाथ मंदिर बरेली?
अलखनाथ मंदिर बरेली के उत्तर पश्चिम दिशा में किला इलाके में स्थित है बाबा अलखनाथ का मंदिर लगभग आज से १२०० वर्ष प्राचीन मंदिर है। वही इसके इतिहास की बात की जाये तो यह मंदिर 6500 वर्ष से भीअधिक पुराना माना जाता है मंदिर के महंत ने बताया कि इस क्षत्र में पहले खूब बांस का जंगल हुआ करता था जोकि चारो तरफ फैला हुआ था उस वक़्त एक बाबा आए थे। आनंद अखाड़ा के अलखिया बाबा ने मंदिर में स्थित एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठ कर कई सालों तक तपस्या की।पास में ही शिवलिंग भी स्थापित था। शिवभक्तों के लिए अलख जगाई। उन्हीं के नाम से जोड़कर इस मंदिर का नाम अलखनाथ पड़ा और जिसके बाद बाबा ने उसी पेड़ के नीचे बाद में बाबा ने समाधि ले ली।
आप जब भी यहाँ अलखनाथ बाबा के दर्शन करने आते है तो सबसे पहले आपको यहाँ 51 फ़ीट ऊँची हनुमान जी विशालकाय मूर्ति लगी हुई है। यहां भक्तों का हर समय आना-जाना लगा रहता है। मंदिर में भीड़ लगी रहती है। जो श्रद्धालुओं के बीच आकर्षण का केंद्र है। यहाँ शनिदेव का मंदिर भी है। मंदिर परिसर में ही रामसेतु का पत्थर है, जो पानी में हमेशा तैरता रहता है। अलखनाथ मंदिर में शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी हो जाती है।
मढ़ीनाथ मंदिर बरेली?
पश्चिम दिशा में स्थित यह प्राचीन मंदिर पांचाल नगरी का है। जोकि सिटी के मढ़ीनाथ मोहल्ला स्थित है। श्री मढ़ीनाथ मंदिर भी काफी प्रसिद्ध मंदिर है। माना जाता है कि मढ़ीनाथ मंदिर पर एक बाबा आए थे। जिनके पास एक मढ़ीधारी सर्प था। फिर उन बाबा ने यहां तपस्या की थी। जिसके कारण इस मंदिर का नाम मढ़ीनाथ मंदिर पड़ा। यहां मणिधारी नाग है जो मंदिर में शिवलिंग की रक्षा करता है।
यहाँ कि मुख्य बात यह है कि मंदिर के साथ साथ यहां आसपास बसी घनी आबादी के मोहल्ले का नाम भी मढ़ीनाथ है। दूसरी कथानुसार कहा जाता है कि यह मंदिर 5000 साल पुराना है जो पांडवों ने अपने वनवास के दौरान बनवाया था। मढ़ीनाथ मंदिर में मौजूद शिवलिंग की स्थापना भी पांडवों द्वारा ही की गयी थी।
पशुपति नाथ मंदिर बरेली?
पीलीभीत बाई पास रोड पर स्थित श्री पशुपति नाथ मंदिर यूं तो ज्यादा पुराना नहीं है मगर यहां बरेली के प्रसिद्ध नाथ मंदिरों में गिना जाता है। इस मंदिर का निर्माण नेपाल में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर की तर्ज पर कराया गया है। इस मंदिर का निर्माण आज से २४ साल पूर्व में समाजसेवी श्री जगमोहन सिंह के द्वारा कराया गया था। वही इस मंदिर में छोटे छोटे 108 शिवलिंग मौजूद है। वही मंदिर परिसर के बीच में बड़ा तालाब है और उस तालाब के मध्य में पशुपति नाथ जी स्थापित है। पुरे सावन माह में पशुपतिनाथ मंदिर में हजारों कावड़िए द्वारा यहाँ बाबा पशुपति नाथ पर जलाभिषेक किया जाता है।
धोपेश्वर नाथ मंदिर बरेली?
बरेली के सदर कैंट के दक्षिण मध्य अग्निकोण में धोपेश्वर नाथ मंदिर स्थित है। इस मंदिर के इतिहास कि बात करे तो यह मंदिर आज से करीब 5000 वर्ष पुराना है। मान्यतानुसार यहाँ धूम्र ऋषि ने कठोर तपस्या की थी जिसके बाद उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और धूम्र ऋषि ने भगवान से जनकल्याण के हितार्थ हेतु भगवान्य शिव से यहाँ विराजने की प्रार्थना की। जिसके बाद यहां स्थापित शिवलिंग को धूम्रेश्वर नाथ के नाम से जाना जाने लगा। वर्तमान में ये मंदिर धोपेश्वर नाथ नाम से जाना जाता है।
वही दूसरी कथा के अनुसार शहर के कैंट के सदर बाजार स्थित बाबा धोपेश्वर नाथ मंदिर महाभारत काल में पांडव, कौरव और भगवान श्रीकृष्ण के युग का साक्षी रहा है। महाभारत में पांडवों के एक गुरु ध्रूम ऋषि ने यहां तपस्या की थी। और उन्होंने अपने प्राणो का त्याग यही किया था जिसके बाद लोगों ने यहां उनकी समाधि बना दी बाद में उस समाधि के ऊपर शिवलिंग की स्थापना की गई। जिसका नाम धोपेश्वर नाथ रखा गया