बरेली में आंवला के रामनगर ब्लॉक में स्थित अहिच्छत्र का आज भी किला मौजूद है। जिसका इतिहास आज से नहीं महाभारत काल से जुड़ा है। प्राचीन काल में यह किला राजा द्रुपद की राजधानी के नाम से जाना जाता रहा। साथ ही मान्यता यह भी है कि यहां राजा द्रुपद की पुत्री द्रोपदी का स्वयंवर हुआ था।
हमारे रुहेलखंड में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन व्यवस्था की कमी के कारण पांचाल के ऐतिहासिक धरोहर को अदृश्य बना दिया है। पांचाल नरेश के अहिच्छत्र स्थित प्राचीन किले तक पहुंचने के लिए पगडंडी से गुज़रना पड़ता है। जहा एक तरफ बरेली के 7 नाथ मंदिरों को आपस में जोड़ने के लिए एक कॉरिडोर की निर्माण योजना पर काम चल रहा है, लेकिन इसका पूरा होने में समय लगेगा। यहां का प्रत्येक कोना महाभारत काल से जुड़ा हुआ है।
वही यहाँ पर स्थित लीलौर झील भी अव्यवस्था के कारण इसकी देखभाल नहीं हो पा रही है। जिसके कारण लीलौर झील ही हालत बहुत ही ज्यादा ख़राब हो चुकी है तथा लीलौर झील अब सूखने के कागार पर है। जिसको अब ध्यान देने की अत्यंत आवश्यकता है, परन्तु इसके बाद भी पर्यटन विभाग द्वारा इसकी सुध नहीं ली है। अगर आप लीलौर झील देखना चाहते है तो आप यहाँ पर्सनल गाडी या बस या फिर ऑटो से यहाँ तक बहुत आसानी से पहुंच सकते है।
अहिच्छत्र का जैन मंदिर धर्मावलंबियों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। आज विश्व पर्यटन दिवस पर हम आपको रुहेलखंड के प्रमुख पर्यटन स्थलों के बारे में बताने जा रहे हैं। आंवला के रामनगर क्षेत्र में अहिच्छत्र का प्राचीन किला आज भी स्थित है। जिसका इसका इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है। प्राचीन काल में यह किला राजा द्रुपद की राजधानी रहा।
पाणिनी रचित अष्टाध्यायी के टीकाकार पतंजलि ने भी अपने महाभाष्य में इसका जिक्र किया है। मान्यता यह भी है कि यहां राजा द्रुपद की पुत्री द्रोपदी का विवाह भी यही हुआ था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इसे गणराज्य बताया गया है। हालाँकि यह किला अब अव्यस्था के कारण खंडहर हो चुका है। लेकिन भारतीय पुरातत्व विभाग इसका संरक्षण कर रहा है। रामनगर के 80 वर्षीय रामासंत ने बताया कि इस क्षेत्र में अश्वत्थामा का आसरा माना जाता है और शाम होने के बाद यहां लोगों को आने-जाने की मनाही है।
ऐसे जाये अहिच्छत्र फोर्ट?
मित्रो अगर आप अहिच्छत्र स्थित प्राचीन किले तक पहुंचने चाहते है तो आप यहाँ सड़क और रेलमार्ग दोनों से ही मार्ग से पहुंच सकते है। आप बरेली से आंवला या बरेली से भमोरा होते हुए रामनगर जा सकते हैं। आंवला से रामनगर की कुल दूरी 14 किलोमीटर है। मुख्य मार्ग के अलावा कुछ दूर तक कच्चा रास्ता भी है जो पर्यटकों को परेशानी देता है और उनके लिए असुविधाओं का कारण बनता है।
जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की तपोस्थली के रूप में यह स्थल देश और विदेश में विख्यात है। जहा लोग दूर-दूर से यहां इनके दर्शन करने के लिए आते हैं चूँकि यह स्थल उनके लिए धार्मिक महत्व रखता है। जानकारी के लिए बताते चले कि यह मंदिर प्रांगण में एक अत्यन्त प्राचीन कुआं भी स्थित है। जिसका अपना धार्मिक महत्व है। बरेली से आंवला जाकर यह स्थल पहुंचा जा सकता है।
प्राचीन पार्श्वनाथ मंदिर?
रामनगर स्थित यह प्राचीन पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर है, इस स्थल को जैन धर्मावलंबियों ने अपने सदयों के प्रयासों से विकसित किया है। जैन कथाकारों के अनुसार, तीर्थांकर पार्श्वनाथ ने ज्ञान प्राप्ति हेतु यही तपस्या की थी। माना जाता है कि व्यंतरवासी संवरदेव ने उनके ऊपर से अपना विमान ले जाने का प्रयास किया परन्तु वह ऐसा करने में विफल हो गया और वह अपना बिमान नहीं ले जा सका, तब उसके बाद उनके द्वारा पार्श्वनाथ की तपस्या को भंग करने का प्रयास अनेकोबर किया। तब नागराज धर्मेंद्र और रानी पद्मावती ने फन फैलाकर पार्श्वनाथ की तपस्या को सम्पूर्ण कराया। हालाँकि कहा तो ये भी जाता है कि महात्मा बुद्ध ने यहां आकर नाग राजाओं को उपदेश दिया और उन्हें बौद्ध धर्म की दीक्षा दी।
रामनगर थीम पार्क?
रामनगर में ही अहिच्छत्र से जुड़ा एक थीम पार्क है। पार्क के बीच में एक मूर्ति स्थापित है, जिसमें अर्जुन ने मछली की आंख पर निशाना साधते हुए द्रौपदी के स्वयंवर को संजीवनी देने के लिए उसे जीता। पर्यटन विभाग द्वारा इस थीम पार्क को आज से दस वर्ष पूर्व कुल दो करोड़ की लागत से विशेष रूप से पर्यटकों के लिए विकसित कराया गया था। अब इस थीम पार्क की देखरेख का जिम्मा जैन मंदिर के अंतर्गत है।
चौबीसी मंदिर?
रामनगर में स्थित चौबीसी मंदिर भी अपने आप में एक खास अहमियत रखता हैं। यहाँ लोगो को मंदिर की चोटी और यहाँ का बगीचा भी पर्यटकों को खूब लुभाता है